Thursday 24 November 2011

Mother


माँ मरियम आपकी करूणा से मैंने प्रेम है क्या यह जाना

आपके पावन स्पर्श का सुख हमने यह अब जाना

कितनी निर्मल है स्नेह कि गंगा जो आपमें बहती है

ऐसी सुन्दर प्यारी मूरत मेरे दिल में रहती है

मैंने जब सोचा माता का स्वरुप तो आपको ही पाया

सम्पूर्ण हो आप आपमें सारा प्यार समाया

मेरे को आपसे बहुत प्यार है माँ

मुझ अकिंचन को एक आपका ही स्नेह माँ


नारायन्ज्वर और शिव ज्वर का युद्ध अत्यंत रोचक एवं भक्तो के लिए फलदायी है! शिव ज्वर के ३ मुख और ४ टंगे हैं! इसके द्वारा स्रष्टि में ताप इतना बढ़ जाता है की चुन और प्रलय सा भयंकर नज़ारा होता है! जब बाणासुर और श्री कृष्ण के मध्य संग्राम हुआ उसमे श्री शिव जी भगवान् बाणासुर के पक्ष से युद्ध में थे और सपरिवार वे बाणासुर की सहायता को तत्पर थे! इसी युद्ध में भक्त के कोमल भाव पर स्नेह वर्षा करने वाले शव भगवान् ने युद्ध में शिव ज्वर का परयोग किया! जिससे कि चुन और ताप बढ़ने लगा ऐसी विषम परिस्तिथि में कृष्ण ने नारायण ज्वर का प्रयोग करना उचित समझा! यह भगवान् नारायण द्वारा निर्मित एक अस्त्र है जिसके द्वारा संसार में शीतलता बढ़ जाती है! कहते हैं के जब ताप हो उसका उपाय शीतलता है किन्तु यदि शीतलता अपने प्रचंड वेग पर आजाये तब उसका कोई उपाय नहीं होता है! इस प्रकार दोनों के मध्य युद्ध आरम्भ हुआ जिसमे अंततः शिव ज्वर शीतलता से अशक्त होने लगा! अंततः उसने श्री कृष्ण से प्रार्थना करना आरम्भ किया और भगवान् श्री कृष्ण ने दयालु होकर नारायण ज्वर से उसको मुक्त कर दिया! इस पारकर इस युद्ध में भगवान् श्री कृष्ण द्वारा अंत में बाणासुर के अभिमान का नाश करने हेतु उसकी भुजाओं को श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र द्वारा भग्न कर दिया! क्युकी यह सही कृपा प्राप्त भक्त था और मात्र अभिमान उसका प्रमुख दोष था! उसके अभिमान के शमन के लिए आवश्यक था के उसकी भुजाओं को कट दिया जाये जिससे संसार भयमुक्त होकर रहे और द्वितीय कारन यह है कि ऐसा श्री शिव का वर भी था का कुछ समय बाद बाणासुर के अतिरिक्त भुजाओं को कटा जायेगा! इस प्रकार पालनहारा ने एक बार फिर अपने प्रेम से समस्त जग कि एवं देवबानी कि रक्षा की! इस कथा का श्रवण अत्यंत फलदायी है इससे मनुष्य भयमुक्त होता है और जो श्री कृष्ण कि विजय को ह्रदय से अनुभव करता है वह इस संसार में कहीं पराजित नहीं होता!

श्री कृष्ण, परम ब्रह्म परमात्मा हैं एवं यह सदैव ही अपने भक्तो क लिए चिंतित रहते हैं! श्री कृष्ण अपने भक्तो को मांगने पर भी सर्वस्व देने की शक्ति रखते हैं किन्तु फिर भी जगत क पालन हारा संसार को दुःख दायक या भक्त के हित के विपरीत वर भी नहीं देते हैं! शिव संसार का समूल नाश करने की शक्ति रखते हैं और स्वयं भगवान् श्री कृष्ण द्वारा पूजित एवं सर्वत्र परम भगवान् के रूप में पुकारे गए हैं! किन्तु शिव भावना के अधीन हैं वे भक्त के स्नेह में आकर कई बार इस प्रकार का भी वर दे देते हैं जो उपयुक्त नहीं होता है उसके लिए, इसके विपरीत कृष्ण प्रत्येक अवस्था में भक्त को वर सोच समझकर ही देते हैं!इस विषय में बाणासुर को शिव द्वारा दिए एक वर का प्रसंग अत है जिसमे उसको एक हज़ार बाँहों का श्री शिव ने वर दिया जिसके परिणामस्वरूप कुछ समयोपरांत उसको असुविधा हुई व स्वयं शिव से ही उसका निवारण की प्रार्थना करना लगा! तब शिव ने उसको एक नए वर से शांत किया! जिसके अनुसार कोई शीघ्र ही उसके इस भार को हल्का कर देगा!
जिसकी परिणति कुछ समय क बाद तब हुयी जब उसको पुत्री ने निंद्रा में अनिरुद्ध जो की कृष्ण के पूरा हैं उनका वरन कर लिया! उषा द्वारा वर्णित होने पर अनिरुद्ध को उसकी सखी एवं राज्य के मंत्री की पुत्री द्वारा रात्रि में उसका अपहरण कर लिया गया! किन्तु दोनों अर्थात उषा एवं अनिरुद्ध में प्रेम के अंकुर परस्पर जागृत हुए व वे एक हो गए! जब बाणासुर को इसका भान हुआ उसने इसका विरोध किया इस पारकर यदुओं और बाणासुर संग्राम हुआ, जिसमे स्वयं शिव बाणासुर के प्रेम में आकर युद्ध में उतरे व हार गए!
शेष............

Monday 21 November 2011

शिव स्वरुप सार


भगवान् श्री शिव इस संसार के प्रथम योग गुरु हैं एवं माता पारवती उनकी प्रथम शिष्य जिसने उनसे योग सीखा! भगवान् शिव पूर्णतया अपने भक्तो के वश में हैं जैसा के मै पहले उदहारण में कह चुकी हूँ! शिव की उपासना अत्यंत सरल है वे मात्र जल बेल पत्र को भी स्वीकार कर लेते हैं. शिव में कुछ मानवीय गुण भी द्रष्टिगोचर होते हैं जैसे के तुरंत भावबिहल हो जाना! भक्तो को एक नन्हे बालक सामान प्रेम देते समय यह विचार न करना के अमुक वस्तु अथवा वर का वह क्या उपयोग करेगा! श्री शिव इन सब विषयों का चिंतन किये बिना भक्तो के स्नेह की पावन गंगा में स्वयं को विस्मित कर देते हैं! उनके शीश पर चन्द्र है जिनसे समस्त जगत को औषधियां प्राप्त होती हैं अतः शिव औषधि विभाग के भी स्वामित्व रखते हैं. अतः लम्बसे समय से बीमारी ग्रसित व्यक्तियों को भी शिव उपासना में मन रमाना अत्यंत लाभकर है! ऐसा देखा गया है की भगवान् शिव के शिवलिंग से गिरने वाले जल के उपयोग से बिमारियों का शमन होता है! भगवान् शिव की उपासना का प्रावधान जातक की जन्म दशाओं के दोष निवारण में भी किया जाता है! शिव सदैव से प्रेम परिपूर्ण परम पुरुष हैं वे नारी के सम्मान के प्रति अत्यंत संवेदन शील हैं! ऐसा कई साहित्यों में उपलब्ध है के उन्होंने माता के सम्मान के लिए यथोचित समय अपने पर्तव्य का दृढ़ता से पालन किया है! इनके पुत्र, कार्तिकेय जी एक गणेश हैं! गणेश स्वयं प्रत्येक कार्य का शुभारम्भ का शुभ हैं एवं शुभ और लाभ नामक दो पुत्रों के गौरव शाली पिता हैं! अर्थात इनका स्वरुप सर्व प्रकार से स्नेह एवेम दया और शुभम है! रिद्धि सिद्धि के पति हैं अतः इनका स्वरुप सर्वथा भव्य है! कार्तिकेय जी बल का प्रतीक हैं वे देवताओं के सेनापति हैं एवं सर्वगुण संपन्न है! मयूर इनका वाहन है और यह शत्रु दमन को सदैव तत्पर हैं!
          भगवान् श्री शिव की पुत्रियाँ हैं स्वयं माता लक्ष्मी एवं परम दयालु ज्ञान की देवी माता सरस्वती जी! कहते हैं दोनों एक दुसरे के आभाव में अपूर्ण हैं अर्थात यदि मनुष्य पर धन और ज्ञान नहीं तोह भी व्यर्थ और मात्र ज्ञान से भ मनुष्य का जीवन विशेषकर इस कलिकाल में असंभव है! अतः इससे यह सुस्पष्ट है के सम्पूर्ण शिव परिवार ही गृहस्थी जीवन के इष्ट रूप में विराजित हैं! इन्ही से मनुष्य को भौतिक जीवन में (जो की इस संसार का आज के समय आवश्यकता है) उन्नति संभव है! अतः जो मनुष्य गृहस्थी में रमे हैं और इसी प्रकार जीना चाहते हैं उनके लिए शिव उपासना अत्यन उपयोगी है! "ॐ नमः शिवाय"   इनका मंत्र है! "बम बम "इनका बीज मंत्र है! महामृत्युंजय मंत्र भी शिव से सम्बंधित है, यह महान मंत्र एकाग्रिता को बढ़ने वाला व समस्त बिमारियों का नाशक है! इस प्रकार समस्त तथ्य हमें शिव के महान स्वरुप में मनुष्य के भले की भावना वोह भी निश्छल स्नेह संग मिलती है!

Saturday 19 November 2011

Krishna

शिव एक परम योगी हैं उनके स्वरुप से समस्त जगत अवगत है! शिव के लिए एक बहुत ही महती बात है यह है कही जाती है की श्री शिव सदैवे बहुत ही अल्प प्रयास से प्रसन्न होते हैं इनके विषय में ऐसे कई घटनाएँ हैं जिनसे ऐसा ही प्रतीत होता है! एक बार एक राक्षस वृतासुर ने ताप किया यह शकुनी पुत्र था! इसने नारद जी से पूछकर श्री शिव की ताप उपासना आरम्भ की! इसने एक यज्ञ किया जिसमे यह अपनी देह के भागो अर्थात अपने अंगो की आहुति देना आरम्भ कर दिया! इस प्रकार का तप किसी भी प्रकार से वैदिक नहीं मन जा सकता है क्युकी जो यज्ञ वैदिक होते हैं उनमे मास मज्जा का प्रयोग नहीं किया जाता है! इनमे मात्र समिधा घृत आदि उपयोग में लाए जाते हैं! इस प्रकार तप करने पर भी जब श्री शिव द्रश्य नहीं हुए तब, उस राक्षस ने अपना शीश काटकर यज्ञ अग्नि में समर्पित करने का निश्चय किया! वह जैसे ही अपने शीश पर प्रहार करने चला ठीक उसी समय श्री शिव ने उसका हाथ रोक दिया. परिणामतः श्री शिव ने यज्ञ स्वीकार किया एवं उसको वर देने का वचन भी दिया. दैत्य ने वर में माँगा के " वह जिसके शीश की स्पर्श करे उसका शीश वहीँ फट जाये! वर देने के उपरान्त शीघ्र ही शिव जान गए के एक बार फिर उनसे एक दुष्ट व्यक्ति के हाथ में एक अनुचित बल दिया जा चूका है! हालाँकि स्वयं शिव इस तथ्य से अनभिज्ञ नहीं थे किन्तु फिर भी उनको यह स्वीकार करना पडा क्यों की वे वर देने के लिए वचन बद्ध थे!
इस राक्षस का वर पाने के उपरांत साक्षात् शक्ति स्वरूप माता पारवती के प्रति ह्रदय आकृष्ट हुआ और इस प्रेरणा के कारण वह शिव की हत्या के लिए प्रतिबद्ध हो गया ! अब चहुँ लोक में शिव अपने प्राण बचाने के लिए भाग रहे थे और वो राक्षस शिव का ही नाश करने के लिए उनका पीछा कर रहा था! यह द्रश्य श्री कृष्ण भी देख रहे थे उनोने देखा अपने प्राण बचने की चेष्टा में भगवान् शिव बैकुंठ धाम सामान एक पवित्र लोक की और आ रहे हैं निश्चय ही वह दैत्य भी इधर ही आएगा अब, यदि ऐसा हुआ तो यह अनुचित और विधि विरूद्ध होगा. अतः स्वयं श्री कृष्ण एक योगी का रूप शर उस दानव के समक्ष जा पहुंचे, और उसकी समस्या सुलझाने में एक मित्रवत व्यवहार की पहल की! राक्षस उनकी माया से स्वयं को बचा नहीं पाया और उनसे साडी घटना को कह डाला! तब श्री कृष्ण ने कहा के शिव तोह अब पागल हो चुके हैं, ऐसी तीन लोको में चर्चा है उन्होंने जिस प्रकार अपने श्वसुर का यज्ञ भंग किया , जो विध्वंस मचाया , यह एक सामान्य लक्षण नहीं है! आप एक बार अछे से परख ले के वरदान मिला भी है आपको अथवा आप यूँ ही दसो दिशाओं में भ्रमित हो भटक रहे हैं! आप ऐसा क्यों नहीं करते आप अपने शुभ हस्त अपने ही शीश पर रखते ऐसा करके आप अवश्य एक निष्कर्ष पर पहुँच जायेंगे! और आप जानेंगे के मेरा विचार सही है! इस प्रकार बैटन में आकर वृतासुर ने अपना हस्त अपने ही शीश पर रखा और परिणामतः अपने ही प्राण ले चूका था! इस प्रकार श्री कृष्ण ने भगान शिव की रक्षा की!

Friday 18 November 2011


तेरी राह रोशन है जो दिल में बसा है नूर रब का

तेरा हुनर रोशन जो नज़र दे मौला


वोह इश्क ही क्या जिसे मुक्कमल नहीं करता रब


वर्ना जिस दिल में बसे रब वहां इश्क बसता


तेरी रहनुमाई क सदके मेरी जान भी कुर्बान


तेरे दर पर मेरा दिल सजता


यह एक गुल है मेरे अरमानो की कबर का


याह रब , मेरे लिए इससे अब कुबूल फरमा


यह जान जिस्म सब तेरा अब इसमें अपना


हुनर आजमा.........आमीन

रहमतों का इंतज़ार

तेरी रहमतो से आज भी दिल बेज़ार है

एक उम्र हो चली अब भी तेरे करम का इंतज़ार है


मायूसियाँ गुनाह हैं तेरे वसीले में


तेरे सजदे से मुझे आज कब इनकार है


फनाह होने चली आज रूह जिस्म से मेरे


तुझे आज फिर भी मुझसे कुछ और दरकार है


ए खुदा मेरे सिर को जो सजदे तेरे पडा


तेरी मुहबतों भरी दुआओं  का इंतज़ार है

                                              ॐ साईं राम                                                     

Wednesday 16 November 2011

shree krishna bhaavna sangrah


कृष्ण भावनामृत को सर्वपराधानता के  विषय में बहुत कुछ सुना जाता है आखिर यह है क्या ? इसका तात्पर्य है कृष्ण से अटूट प्रेम और श्रद्धा बस उसी की चाह और कुछ नहीं. इस्सी लिए कृष्ण क भक्त निर्धन और दरिद्र पाए जाते हैं! कृष्ण के उपासक क्यों अन्य देवो के उपासको की भांति धनी नहीं होते ? क्यों वे भौतिक सुखो से वंचित होते हैं? ऐसे अनेको अनेक प्रश्न हमारे समक्ष आते हैं महान भक्त और विद्वानों के द्वारा इसका यह समाधान दिया गया है के , कृष्ण जो की स्वयं लक्ष्मी पति  हैं जो की स्वयं सभी मायाओं के स्वामी हैं उनके ही भक्त ऐसे हाल में क्यों ? इसका कारण मात्र है उनका अपने भक्त के प्रति स्नेह, कृष्ण अपने भक्तो को निर्धन बनाकर उनको सांसारिक माया और मोह के बन्धनों से मुक्त कर देते हैं  जिससे की भक्त निश्छल मन और शुद्ध भाव से स्वयं को अपनी दसो इन्द्रियों के बंधन से मुक्त होकर श्री कृष्ण में स्वयं को समा दे. जैसे के मीरा बाई, इनके शुद्ध भाव ने और निर्मल प्रेम ने कृष्ण और इनके मध्य उपस्थित समस्त भेद मिटा दिए यही वह भाव है जिसको कृष्ण अपने उपासको के ह्रदय में प्रजवलित करना चाहते हैं! भक्त के समक्ष इस कलिकाल के समस्त मायावी स्वरुप प्रकट हो जाएँ ,उसका इन सब से मोहभंग हो और अपने ईश से उसकी कामना करे जो स्वयं परमेश्वर श्री कृष्ण देना चाहते हैं, और इस अथक संतोष और तपस्या का प्रतिफल है ब्रह्मा , जिसका अनुभव मनुष्य को सीधे ही बैकुंठ धाम में श्री चरणों में ले जाता है!

पुष्प मिश्रित भीनी सुगंध के अनूठे अनुभव से

साईं सदा ह्रदय में मिलते,


जब घने अन्धयारी रैना पग पग संदेह देती है


तब साईं माँ की स्नेहिल छाया


अंतर्मन भिगो  देती है


हमरे मन की सारी पीड़ा वोह पल पल


नयनो से हर लेती है


ॐ साईं राम

 
जब मैंने इस दुनिया में पहली साँस ली

उस वक्त मै कितनी बेबस और लाचार थी


नहीं ला सकी अपनी जुबां पर एक मासूम भूख को


मगर  मेरे  परमेश्वर आपने मेरी उस


अनकही आवाज़ कु सुना न सिर्फ सुना


बल्कि इंसानी जिस्म वोह एहसास डाले के


आज मै न सिर्फ इस दुनिया में जी रही हूँ


मुझे यह लब्ज़ जिंदगी में हरदम हौसला अफजाई करते हैं


आपका एहसास देते हैं


आप हो यहाँ हो , मेरे साथ हो, और आज भी मेरे


हर अनकहे जज्बे को सुन रहे हो


आमीन


ॐ साईं राम





Thursday 10 November 2011

एक शान नज़र सी रोशन कोई नज़र नहीं देखि

मैंने यह सच है के आज तक उल्फ़ते नहीं देखि


तेरे हुस्रना सो ओह माँ मरियम जहाँ में कोन है हसीं


मैंने तेरी आँखों में जहाँ भर की शाफ्फकते हैं देखि


बड़ी मुहब्बतें हैं इन आँखों में के मै तेरी हो गयी


इन प्यार भरे नज़रो के सहर में खो गई


हज़ार जन्नतों से हसीं एहसास हैं यह आँखे


जिनके लिए पढने को मुझे कोई आयत नहीं मिलती


माँ मरियम तेरे से हसीं मुझे कोई और माँ नहीं मिलती


...........................ऋतू



sajdaa.......

नूर-ऐ -खुदा सा रोशन है मेरा रब है तू

तेरे सजदे में यह फकीरान ,मेरा दातार तू


जीते हैं तेरे नाम पर मरते हैं तुम्ही पर


यहाँ शर्त नहीं इश्क है मालिक तेरा मुझपर


हर ज़र्रे में तेरी खुदाई रहमत है साईं तू


जीते हैं बेख़ौफ़ मेरा रहनुमा है तू


जन्नते हैं कुर्बान तेरी शान पे मौला


सजदे में एक सर मेरा भी क़ुबूल कर लो साईं


ॐ साईं राम

क्यूँ कर न जिए जब खुल के जब याकें खुदा पर है

वोह मेरा नसीब मेरा रहबर इस सारे जहाँ में हैं


फकत एक नाम काफी है मेरे मालिक का


वाही मरहम है मेरे ज़ख्म का और बीमारी का


कहने के लिए फ़कीर मस्जिद में रहता है


ज़रा झांको मेरे दिल में यहाँ पर भी वो रहता है


मैं मांगती हूँ उससे रहमते वोह देता रहता है


मेरे दामन में बस उसका ही दिया है जो रहता है


रहम मेरे मौला साईं


ॐ साईं राम

Princess of heart!!

Once it was a valley of perils to me when you left me

But now I think that was a grace of God for me.

Now I have a heart, it only mine

Now I have a life which only mine

now I am living for me, not for others

I was only slave of your thoughts but now

I am princess of my heart!

Tuesday 8 November 2011


Once my love asked to me

“How special I am for you”

I said,

As the first ray of sun is special for sun temple,

as my first smile for my father

as my first cry to check my life

you are special for me as

the rain is important for land

I can not say more

but always have this in your heart

my life is only a burden without you……..

<3 <3 <3 <3


Monday 7 November 2011

साईं आपके साथ से मेरा जीवन संवर गया

जाने कहाँ कहाँ मै भटकी अब सारा जग निखर गया

आपके चिंतन से दुनिया में अब चेतना जागी

घोर घने अधेरे में भी नवदीप जलाने जाने

अब मै जीयूं मस्त पवन सी

आगे साईं का जाने
ॐ साईं राम

Saturday 5 November 2011

God in me, me in God

श्री कृष्ण ने गीता में कहा है के वही एक संपूर्ण पुरुष हैं बाकि सभी मात्र आत्माएं हैं ...येह कुछ सीमाओं तक उचित प्रतीत होता है, इसका वैज्ञानिक साक्ष्य येह है के गरभास्थ शिशु अपनी प्राम्भिक अवस्था में बालिका ही होता है अर्थात स्त्री लिंग होता है, १४ सप्ताह बाद येह निर्धारित होता है के उसका सही अस्तित्व क्या है , स्त्री या पुरुष..नर या मादा!
अतः स्पष्ट है के हम सभी उस इष्ट के अधीन हैं वही निर्माता है और उसी के साथ संयोग हमारी पूर्णता है. जैसे की कोई स्त्री या पुरुष कितने अधूरे हैं अगर वोह एकल हैं यदि वेह अलग हैं , उसनका मिलन ही इस स्रष्टि की पूर्णता है. ठीक वैसे ही मनुष्य के अस्तित्वा की पूर्णता परमात्मा से एक होकर ही होती है, सबके माध्यम अलग हैं किन्तु सभी एक राह के पथिक है उस ईश्वर के. उसी की लालसा हमें सदैव आकर्षित करती है.
           आर्यसमाजी हवन में और सनातन धर्मी अन्यत्र कर्म कांड में उस एक ईश्वर को प्रसन्न करने की प्रक्रिया में लगे रहते हैं  किन्तु क्या इस स्रष्टि का निर्माता जिसके दिए जीवन और इस संसार में हम श्वास लेते हैं! क्या वोह इस का मोह रखता है. जिसकी बने यह प्रकृति ....यह आकाश.........यह धरा ...यह सब कुछ उस परमात्मा का ही तोह है. हम क्यों इस जीवन यात्रा का एक अंग हैं. क्युकि शायद वह परमात्मा अपनी सबसे सुन्दर रचना को देख कर परखकर  अपने में समामेलन करना चाहता है. मनुष्य का जनम एक यात्रा सा है और इसका अंत है उस परम पिता या परम प्रिय परमात्मा में विलीन हो जाना !

ॐ साईं राम .

Friday 4 November 2011

ईश्वरतत्त्व

संसार के आरम्भ से ही हम परमात्मा का चिंतन  करते आये हैं. जन्म से ही हमें एक ईश है उसके विषय में ज्ञान कराया जाता है. बाल्यावस्था से लेकर इस आयु तक सदैव हम एक शक्ति का आभास करते हैं जो हमें ही नहीं इस संपूर्ण स्रष्टि को संचालित कर रही है. क्या है वह शक्ति ?  अगर ईशवर है तोह हमसे संवाद क्यों नहीं करता है ? इतने सारे प्रश्न मन में आते हैं जिनका कही भी सटीक उत्तर नहीं मिलता है. कुछ शैव हैं, तोह कुछ लिंगायत, कोई शाक्य तोह कोई राधा स्वामी को मानता है, इतनी शाखाएं हैं परम तत्त्व की के यह एक दुर्लभ सा कार्य हो जाता है के किसे भजे और किसको नहीं.
                        ईश्वर देखने में कैसा है , यह कोई नहीं जानता जिन तस्वीरो और मूर्तियों में हम उसके स्वरुप को तलाशते हैं वे तो राजा रवि वर्मा की कला का एक अदभुद स्वरुप हैं, निश्चय ही परमात्मा ने स्वयं खड़े होकर वह नहीं बनाया होगा. दितीय सभी देवी देवता का दक्षिण भारतीय ही हैं जो वहां के पहनावे में ही द्रष्टिगोचर होते हैं...... उत्तर सरल है , सब राजा रवि वर्मा की कृतिया हैं और जैसे उनके मन के  ईश थे वैसी नज़र आई. किन्तु प्रश्न यही समाप्त नहीं होता ईश्वर क्या है ? प्रश्न अभी भी वही पर खडा है.
             मगर क्या यह इतना सरल है, जिस पहेली को सुलझाने में बड़े बड़े जपी हारे क्या मै समझ सकूंगी. शायद इसकी आवश्यकता ही नहीं. मेरे लिए परमत्मा परम शक्ति हर जगह मौजूद है, ऐसा कुछ नहीं जो उस परमात्मा से जुदा नहीं है. अगर पुष्प एक भीनी सुगंध देते हैं तोह देखो कितना बड़ा चमत्कार है के हर समय खुली पवन में रह कर भी इसनकी सुगंध सर्वथा बनी रहती है. धीमी पवन की नमी में वोह खुदा है वर्ना क्या हवा में भी पानी अपने अस्तित्व का आभास देता है कभी ,  जल का सपर्श कितना सौम्य है, हर कोई उसके निर्मलता में खो जाता है, जब प्यास की तृप्ति के लिए इतना कुछ है फिर भी हम जल से ही तृप्त हो ते हैं क्यों ?  इनके रचनाकार का कोंन है ? यह ईश्वर का आभास है....वही तोह है, सूर्य हर ऋतू में सदैव रहता है अपने गुणों क साथ चन्द्र कभी थकता नहीं क्युकि ईश है, भगवान् है, अल्लाह है......साईं हैं.....उस परमात्मा को शत शत नमन !