Saturday 19 November 2011

Krishna

शिव एक परम योगी हैं उनके स्वरुप से समस्त जगत अवगत है! शिव के लिए एक बहुत ही महती बात है यह है कही जाती है की श्री शिव सदैवे बहुत ही अल्प प्रयास से प्रसन्न होते हैं इनके विषय में ऐसे कई घटनाएँ हैं जिनसे ऐसा ही प्रतीत होता है! एक बार एक राक्षस वृतासुर ने ताप किया यह शकुनी पुत्र था! इसने नारद जी से पूछकर श्री शिव की ताप उपासना आरम्भ की! इसने एक यज्ञ किया जिसमे यह अपनी देह के भागो अर्थात अपने अंगो की आहुति देना आरम्भ कर दिया! इस प्रकार का तप किसी भी प्रकार से वैदिक नहीं मन जा सकता है क्युकी जो यज्ञ वैदिक होते हैं उनमे मास मज्जा का प्रयोग नहीं किया जाता है! इनमे मात्र समिधा घृत आदि उपयोग में लाए जाते हैं! इस प्रकार तप करने पर भी जब श्री शिव द्रश्य नहीं हुए तब, उस राक्षस ने अपना शीश काटकर यज्ञ अग्नि में समर्पित करने का निश्चय किया! वह जैसे ही अपने शीश पर प्रहार करने चला ठीक उसी समय श्री शिव ने उसका हाथ रोक दिया. परिणामतः श्री शिव ने यज्ञ स्वीकार किया एवं उसको वर देने का वचन भी दिया. दैत्य ने वर में माँगा के " वह जिसके शीश की स्पर्श करे उसका शीश वहीँ फट जाये! वर देने के उपरान्त शीघ्र ही शिव जान गए के एक बार फिर उनसे एक दुष्ट व्यक्ति के हाथ में एक अनुचित बल दिया जा चूका है! हालाँकि स्वयं शिव इस तथ्य से अनभिज्ञ नहीं थे किन्तु फिर भी उनको यह स्वीकार करना पडा क्यों की वे वर देने के लिए वचन बद्ध थे!
इस राक्षस का वर पाने के उपरांत साक्षात् शक्ति स्वरूप माता पारवती के प्रति ह्रदय आकृष्ट हुआ और इस प्रेरणा के कारण वह शिव की हत्या के लिए प्रतिबद्ध हो गया ! अब चहुँ लोक में शिव अपने प्राण बचाने के लिए भाग रहे थे और वो राक्षस शिव का ही नाश करने के लिए उनका पीछा कर रहा था! यह द्रश्य श्री कृष्ण भी देख रहे थे उनोने देखा अपने प्राण बचने की चेष्टा में भगवान् शिव बैकुंठ धाम सामान एक पवित्र लोक की और आ रहे हैं निश्चय ही वह दैत्य भी इधर ही आएगा अब, यदि ऐसा हुआ तो यह अनुचित और विधि विरूद्ध होगा. अतः स्वयं श्री कृष्ण एक योगी का रूप शर उस दानव के समक्ष जा पहुंचे, और उसकी समस्या सुलझाने में एक मित्रवत व्यवहार की पहल की! राक्षस उनकी माया से स्वयं को बचा नहीं पाया और उनसे साडी घटना को कह डाला! तब श्री कृष्ण ने कहा के शिव तोह अब पागल हो चुके हैं, ऐसी तीन लोको में चर्चा है उन्होंने जिस प्रकार अपने श्वसुर का यज्ञ भंग किया , जो विध्वंस मचाया , यह एक सामान्य लक्षण नहीं है! आप एक बार अछे से परख ले के वरदान मिला भी है आपको अथवा आप यूँ ही दसो दिशाओं में भ्रमित हो भटक रहे हैं! आप ऐसा क्यों नहीं करते आप अपने शुभ हस्त अपने ही शीश पर रखते ऐसा करके आप अवश्य एक निष्कर्ष पर पहुँच जायेंगे! और आप जानेंगे के मेरा विचार सही है! इस प्रकार बैटन में आकर वृतासुर ने अपना हस्त अपने ही शीश पर रखा और परिणामतः अपने ही प्राण ले चूका था! इस प्रकार श्री कृष्ण ने भगान शिव की रक्षा की!

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