Thursday 24 November 2011

नारायन्ज्वर और शिव ज्वर का युद्ध अत्यंत रोचक एवं भक्तो के लिए फलदायी है! शिव ज्वर के ३ मुख और ४ टंगे हैं! इसके द्वारा स्रष्टि में ताप इतना बढ़ जाता है की चुन और प्रलय सा भयंकर नज़ारा होता है! जब बाणासुर और श्री कृष्ण के मध्य संग्राम हुआ उसमे श्री शिव जी भगवान् बाणासुर के पक्ष से युद्ध में थे और सपरिवार वे बाणासुर की सहायता को तत्पर थे! इसी युद्ध में भक्त के कोमल भाव पर स्नेह वर्षा करने वाले शव भगवान् ने युद्ध में शिव ज्वर का परयोग किया! जिससे कि चुन और ताप बढ़ने लगा ऐसी विषम परिस्तिथि में कृष्ण ने नारायण ज्वर का प्रयोग करना उचित समझा! यह भगवान् नारायण द्वारा निर्मित एक अस्त्र है जिसके द्वारा संसार में शीतलता बढ़ जाती है! कहते हैं के जब ताप हो उसका उपाय शीतलता है किन्तु यदि शीतलता अपने प्रचंड वेग पर आजाये तब उसका कोई उपाय नहीं होता है! इस प्रकार दोनों के मध्य युद्ध आरम्भ हुआ जिसमे अंततः शिव ज्वर शीतलता से अशक्त होने लगा! अंततः उसने श्री कृष्ण से प्रार्थना करना आरम्भ किया और भगवान् श्री कृष्ण ने दयालु होकर नारायण ज्वर से उसको मुक्त कर दिया! इस पारकर इस युद्ध में भगवान् श्री कृष्ण द्वारा अंत में बाणासुर के अभिमान का नाश करने हेतु उसकी भुजाओं को श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र द्वारा भग्न कर दिया! क्युकी यह सही कृपा प्राप्त भक्त था और मात्र अभिमान उसका प्रमुख दोष था! उसके अभिमान के शमन के लिए आवश्यक था के उसकी भुजाओं को कट दिया जाये जिससे संसार भयमुक्त होकर रहे और द्वितीय कारन यह है कि ऐसा श्री शिव का वर भी था का कुछ समय बाद बाणासुर के अतिरिक्त भुजाओं को कटा जायेगा! इस प्रकार पालनहारा ने एक बार फिर अपने प्रेम से समस्त जग कि एवं देवबानी कि रक्षा की! इस कथा का श्रवण अत्यंत फलदायी है इससे मनुष्य भयमुक्त होता है और जो श्री कृष्ण कि विजय को ह्रदय से अनुभव करता है वह इस संसार में कहीं पराजित नहीं होता!

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